माफी का भी अपना अलग ही मायाजाल है। आप चाहे लाख माफी मांग लीजिए, पर मिल ही जाएगी, इसकी कोई गारंटी नहीं। अजित पवार इसीलिए एक अदद माफी को तरस रहे हैं। पर दुनिया है कि माफ कर ही नहीं रही। पेशाब करके बांध भरने के अपने कुख्यात बयान पर अजित ने खुद ने माफी मांग ली। महाराष्ट्र में खेतों में पानी न होने से परेशान धरने पर बैठे किसानों की बांध से पानी छोड़ने की मांग पर अजित पवार ने कहा था कि अगर बांधों में पानी नहीं है तो कहां से छोड़ें। क्या उन्हें पेशाब से भर दें?
निरंजन परिहार
toc news internet channal
वैसे देखा जाए तो, अजित के इस बेवकूफी भरे बयान पर उनके चाचा और एमसीपी के मुखिया शरद पवार को माफी मांगने की जरूरत नहीं थी। लेकिन पवार बड़े नेता हैं। बहुत बड़े नेता। इतने बड़े कि सोनिया गांधी भी उनसे पंगा लेने से कतराती हैं। शरद पवार तोल मेल कर बोलते हैं। और बोलने से पैदा होनेवाले बवाल और बवंडर को भी जानते हैं, सो भतीजे की गलतबयानी पर खुद ने माफी मांग ली। लोग फिर भी माफ करने को तैयार नहीं हुए, और दबाव बना, तो अजित पवार ने विधान परिषद में मांग ली, विधान सभा में भी मांग ली। बोल कर मांग ली और लिखित में भी मांग ली। पब्लिक के सामने मांग ली और अकेले में भी मांग ली। लेकिन माफी है कि उनको मिल ही नहीं रही। अब लोग महाराष्ट्र के सीएम पृथ्वीराज चव्हाण के पीछे पड़े हैं। अजित पवार महाराष्ट्र सरकार में डिप्टी सीएम हैं। चव्हाण उनके मुखिया हैं। कायदे से और नैतिक रूप से भी उनके सत्कर्म, अपकर्म, दुष्कर्म और धत्कर्म आदि समस्त कर्मों की जिम्मेदारी सीएम की ही है।
सो, लोग सीएम से माफी मांगने की मांग कर रहे हैं। राजनीति में ऐसा ही होता है। करे कोई, भरे कोई। अजित पवार कह रहे हैं कि उनने जो कहा, उस पर वे माफी मांग चुके हैं और अब उस पर कोई राजनीति करने की जरूरत नहीं है। लेकिन ऐसा नहीं होता पवार साहब... अभी तो धीरे धीरे सोए हुए सांप जागेंगे। वे फूंफकारेंगे। वैसे भी आप कोई पहली बार ऐसा नहीं बोले हैं। फिर जब भी बोलते हैं, तो कुछ कड़वा ही बोलते हैं। इसलिए इस बार लोग आपको आसानी से छोड़नेवाले नहीं है। पहली बार तो मजबूती से बट्टे में आए हैं। बात निकलेगी, तो दूर तलक जाएगी ही, कोई रोक थोडे ही सकता है।
हमारे देश मे राजनेताओं के नाम पर विशिष्ट स्थलों के नाम रखने की परंपरा है। महात्मा गांधी और नेहरूजी के नाम पर शहरों के नाम हैं, इंदिरा गांधी के नाम पर बड़ी बड़ी परियोजनाएं हैं। सो, और भले ही कुछ नहीं हो, पर देश में अब अजित पवार के नाम पर कम से कम पेशाब घर तो खुलने तय हैं। हो सकता हैं लोग उनके नाम पर बने अजित मूत्रालयों के उदघाटन के लिए उन्हें आमंत्रित भी करें। वैसे अपन पहले भी कई बार कह चुके हैं और अब फिर से कह रहे हैं कि अजित पवार कोई सुधरनेवाले मनुष्य नहीं हैं। सुधरेंगे इसलिए नहीं कि अजित पवार में राजनीतिक रूप सुधरने के गुण थोड़े कम दिखाई देते हैं। फिर बात अगर राष्ट्रीय परिदृश्य की करें, तो अजित पवार और उनकी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से देश तो कम से कम कोई बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं है।
अजित पवार चाहे पेशाब से नदियां भरने की बात कहें या कहने के बाद माफी मांग लें, किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। वे अकड़ू टाइप के आदमी हैं, और भले कुछ भी बोलें तो उनके बोलने के न तो कोई बहुत बड़े राजनीतिक अर्थ निकलते हैं और ना ही राजनीति पर कोई असर होनेवाला। पर, इतना जरूर है कि पेशाब पर ताजा बयान के बाद उनकी निजी जिंदगी में पेशाब की नदियां जरूर बहने लगी हैं, जो आनेवाले कई दिनों तक उफान मारती रहेंगी। राजनीति में माफियां कोई मांगने भर से ही नहीं मिला करती।
Posted by 08.57
, Published at
Tidak ada komentar:
Posting Komentar