चतुर्थ महर्षि पतंजलि सप्ताह आयोजन(आज्ञा चक्र)
आज्ञा चक्र को साधने की तैयारी लाती है जीवन में जागृति का उजियारा
भोपाल । भूरमध्य (दोनों आंखों के बीच भ्रकूटी में) में आज्ञा
चक्र स्थित है जहां उद्गीय, हूँ, फट, विषद, स्वधा स्वहा, सप्त स्वर आदि
का निवास है। यहां अपार शक्तियां और सिद्धियां निवास करती हैं। इस आज्ञा
चक्र का जागरण होने से यह सभी शक्तियां जाग पड़ती हैं। आयुर्वेद में इस
चक्र के जागरण के लिए योग, प्राणायाम के साथ साथ जड़ी बूटियों का भी
योगदान रहता है। अलग अलग मरीज को राशि, और प्रकृति के आधार पर अलग अलग
जड़ीबूटियां देकर इस चक्र की चेतना बढ़ाई जा सकती है। यही कारण है कि
आयुर्वेद से रोगों का इलाज अन्य पद्धतियों की तुलना में ज्यादा व्यापक
असर छोड़ता है।
चतुर्थ महर्षि पतंजलि सप्ताह आयोजन 2013 में देश के विभिन्न अंचलों से आए
वैद्यों ने इलाज की पुरातनपंथी विधियों को आज के संदर्भ में परिभाषित किए
जाने की जरूरत बताई है। वैद्यों का कहना है कि वे पारंपरिक रूप से जिन
विधियों का इस्तेमाल करके रोगियों का उपचार करते हैं कई बार उन्हें
झाड़फूंक या टोना टोटका समझा जाता है। कई वैद्यों की शैली भी इस तरह
रहस्यमयी होती है कि लोगों को समझ नहीं आता कि उनका उपचार कैसे हो गया
है। इसके बावजूद बडी़ संख्या में आम लोग वैद्यकीय परामर्श से अपनी जीवन
यात्रा सफल बनाते हैं।
भारतीय योग अनुसंधान केन्द्र आनंदनगर भोपाल के आचार्य हुकुमचंद शनकुशल ने
कहा कि गुप्त उपचार विधियों से जिन जीर्ण रोगियों का उपचार किया जाता है
उन विधियों को वैज्ञानिक आधार देकर हम आयुर्वेद के प्रति लोगों की धारणा
बदल सकते हैं। उन्होंने बताया कि ओसामा नईम खान नाम की बीस वर्षीय बालिका
को शहर के एक नामी अस्पताल के आईसीयू में सत्रह दिनों तक भर्ती रही थी।
उसे ज्वर था और वह अशक्त हो चुकी थी।डाक्टरों ने उसका उपचार करने से मना
कर दिया था जब उसे आश्रम लाया गया तो उसकी पल्स120 थी। आश्रम में उसे
विभिन्न क्रियाएं कराई गईं और जड़ी बूटियों के नस्य दिए गए। जड़ी बूटियों
के शर्बत, चूरण और चटनियों ने दस दिनों के भीतर उसे भला चंगा कर दिया। इस
तरह की उपचार पद्धति को आज वैज्ञानिक तौर पर परिभाषित किया जाना जरूरी
है।
आज विभिन्न वैद्यों ने हथौड़ा, कील, लोटे और शरीर की हड्डियां बिठाकर
विभिन्न रोगों की चिकित्सा का प्रदर्शन किया। इंदौर से आए वैद्य ओमानंद
जी ने ध्यान क्रियाओं पर व्याख्यान दिया। शिविर में आने वालों को
ग्वारपाठा की पूरी, जड़ी बूटियों युक्त दाल और ग्वारपाठा, मिर्च, प्याज
की चटनी का भोजन कराया गया। शाम 6.30 बजे से जनजातीय संग्रहालय में योग
कंफेडरेशन आफ इंडिया की पहल पर अफ्रीकन बैंड का आयोजन रखा गया है जो
महर्षि पतंजलि के योग सूत्रों का वैश्विक उद्घोष करेगा।
भवदीय
डॉ.एस.पी.सिंह, राष्ट्रीय सचिव
योग कंफेडरेशन आफ इंडिया
09074818422
आज्ञा चक्र को साधने की तैयारी लाती है जीवन में जागृति का उजियारा
भोपाल । भूरमध्य (दोनों आंखों के बीच भ्रकूटी में) में आज्ञा
चक्र स्थित है जहां उद्गीय, हूँ, फट, विषद, स्वधा स्वहा, सप्त स्वर आदि
का निवास है। यहां अपार शक्तियां और सिद्धियां निवास करती हैं। इस आज्ञा
चक्र का जागरण होने से यह सभी शक्तियां जाग पड़ती हैं। आयुर्वेद में इस
चक्र के जागरण के लिए योग, प्राणायाम के साथ साथ जड़ी बूटियों का भी
योगदान रहता है। अलग अलग मरीज को राशि, और प्रकृति के आधार पर अलग अलग
जड़ीबूटियां देकर इस चक्र की चेतना बढ़ाई जा सकती है। यही कारण है कि
आयुर्वेद से रोगों का इलाज अन्य पद्धतियों की तुलना में ज्यादा व्यापक
असर छोड़ता है।
चतुर्थ महर्षि पतंजलि सप्ताह आयोजन 2013 में देश के विभिन्न अंचलों से आए
वैद्यों ने इलाज की पुरातनपंथी विधियों को आज के संदर्भ में परिभाषित किए
जाने की जरूरत बताई है। वैद्यों का कहना है कि वे पारंपरिक रूप से जिन
विधियों का इस्तेमाल करके रोगियों का उपचार करते हैं कई बार उन्हें
झाड़फूंक या टोना टोटका समझा जाता है। कई वैद्यों की शैली भी इस तरह
रहस्यमयी होती है कि लोगों को समझ नहीं आता कि उनका उपचार कैसे हो गया
है। इसके बावजूद बडी़ संख्या में आम लोग वैद्यकीय परामर्श से अपनी जीवन
यात्रा सफल बनाते हैं।
भारतीय योग अनुसंधान केन्द्र आनंदनगर भोपाल के आचार्य हुकुमचंद शनकुशल ने
कहा कि गुप्त उपचार विधियों से जिन जीर्ण रोगियों का उपचार किया जाता है
उन विधियों को वैज्ञानिक आधार देकर हम आयुर्वेद के प्रति लोगों की धारणा
बदल सकते हैं। उन्होंने बताया कि ओसामा नईम खान नाम की बीस वर्षीय बालिका
को शहर के एक नामी अस्पताल के आईसीयू में सत्रह दिनों तक भर्ती रही थी।
उसे ज्वर था और वह अशक्त हो चुकी थी।डाक्टरों ने उसका उपचार करने से मना
कर दिया था जब उसे आश्रम लाया गया तो उसकी पल्स120 थी। आश्रम में उसे
विभिन्न क्रियाएं कराई गईं और जड़ी बूटियों के नस्य दिए गए। जड़ी बूटियों
के शर्बत, चूरण और चटनियों ने दस दिनों के भीतर उसे भला चंगा कर दिया। इस
तरह की उपचार पद्धति को आज वैज्ञानिक तौर पर परिभाषित किया जाना जरूरी
है।
आज विभिन्न वैद्यों ने हथौड़ा, कील, लोटे और शरीर की हड्डियां बिठाकर
विभिन्न रोगों की चिकित्सा का प्रदर्शन किया। इंदौर से आए वैद्य ओमानंद
जी ने ध्यान क्रियाओं पर व्याख्यान दिया। शिविर में आने वालों को
ग्वारपाठा की पूरी, जड़ी बूटियों युक्त दाल और ग्वारपाठा, मिर्च, प्याज
की चटनी का भोजन कराया गया। शाम 6.30 बजे से जनजातीय संग्रहालय में योग
कंफेडरेशन आफ इंडिया की पहल पर अफ्रीकन बैंड का आयोजन रखा गया है जो
महर्षि पतंजलि के योग सूत्रों का वैश्विक उद्घोष करेगा।
भवदीय
डॉ.एस.पी.सिंह, राष्ट्रीय सचिव
योग कंफेडरेशन आफ इंडिया
09074818422
Posted by 05.04
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