वीरेंद्र सेंगर
नरेंद्र मोदी पार्टी में नया रुतबा हासिल करने के बाद कल पहली बार मुंबई पहुंचे। यहां पर उन्होंने महाराष्ट्र भाजपा कोर ग्रुप के नेताओं के साथ लंबी मंत्रणा की। दरअसल, महाराष्ट्र दौरे का उनका राजनीतिक एजेंडा यही था कि इस बार गोपीनाथ मुंडे और नितिन गडकरी गुटों के बीच समझौता करा दिया जाए। ताकि, यहां पर पार्टी मजबूती से चुनावी चुनौती के लिए तैयार हो सके। इसी एजेंडे के तहत बैठक में विशेष आमंत्रित के रूप में पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी और लोकसभा में पार्टी के उपनेता गोपीनाथ मुंडे को खासतौर पर बुलाया गया था। बैठक में हिस्सा लेने के लिए राज्य के संगठन प्रभारी महासचिव राजीव प्रताप रूडी भी पहुंचे थे। कोर ग्रुप की बैठक में राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष पीयूष गोयल और पूर्व सांसद किरीट सोमैया को भी बुलाया गया। पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर भी हाजिर रहे। लेकिन, नितिन गडकरी अचानक नदारत हो गए।
सूत्रों के अनुसार, पहले से ही तय था कि गडकरी, मोदी के मुंबई प्रवास के दौरान हाजिर रहेंगे। वे कोर ग्रुप की बैठक में मुंडे के साथ हिस्सेदारी जरूर करेंगे। गडकरी की अनुपस्थिति को लेकर कई सवाल भी उठे। यही चर्चा रही कि टीम मोदी के लोग राज्य की राजनीति में मुंडे के गुट को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं। ऐसे में, गडकरी ने गैर-हाजिर रहकर अपनी नाराजगी का संदेश दे दिया है। उल्लेखनीय है कि पिछले वर्षों में गडकरी और मोदी के भी रिश्ते बहुत अच्छे नहीं रहे। पार्टी अध्यक्ष के रूप में गडकरी की राजनीतिक शैली को मोदी हजम नहीं कर पाते रहे। गडकरी के कार्यकाल में हुई दो महत्वपूर्ण राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठकों से भी मोदी नदारत रहे थे। यहां तक कि तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष गडकरी के कई निर्देशों को ‘दबंग’ मोदी ने ठेंगा दिखा दिया था। पिछले साल उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के दौरान मोदी प्रचार अभियान में शामिल नहीं हुए। जबकि, गडकरी ने यहां की कुछ रैलियों में शामिल होने के लिए उनसे खासतौर पर कहा था। इस तरह के कई मुद्दे रहे हैं, जिनकी वजह से दोनों के रिश्ते लंबे समय से पटरी पर नहीं आए।
पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने जोरदार पैरवी की थी कि इस साल होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी एक अलग से प्रचार समिति बनाए। इसकी कमान वो गडकरी को सौंप दे। आडवाणी की इस सलाह को लेकर पार्टी के अंदर विवाद बढ़ने की आशंका बढ़ी थी। इसी के चलते गडकरी ने खुद ऐलान किया था कि वे ऐसी किसी चुनावी समिति की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते। क्योंकि, वे लोकसभा का चुनाव नागपुर से लड़ना चाहते हैं। इसी की तैयारी में अब अपना ज्यादा समय लगाना पसंद करेंगे। सूत्रों का दावा है कि संघ नेतृत्व के निर्देश पर गडकरी ने इस आशय का ऐलान किया था। जबकि, वे अंदरूनी तौर पर मोदी की ‘बुलडोजरी’ राजनीतिक शैली को पसंद नहीं करते।
गडकरी की नाराजगी से महाराष्ट्र में भाजपा का काफी नुकसान हो सकता है। क्योंकि, मुंडे और गडकरी गुटों की खींचतान के चलते पिछले लोकसभा चुनाव में भी पार्टी को खासा नुकसान हुआ था। इसको देखते हुए खुद मोदी ने गडकरी को मनाने की कोशिश की है। शायद इसी के चलते कुछ दिनों से गडकरी, मोदी के पक्ष में जमकर बयानबाजी भी करते नजर आए। इसी से लगने लगा था कि अब मोदी और गडकरी के बीच सबकुछ सामान्य हो गया है। ऐसे में, मोदी का ‘महाराष्ट्र मिशन’ कामयाब हो सकता है। लेकिन, गडकरी की गैर-हाजिरी से कई संशय अंदरूनी राजनीति में फिर से तैरने लगे हैं। हालांकि, प्रकाश जावडेÞकर ने यही सफाई दी है कि गडकरी को जरूरी निजी काम से दिल्ली जाना पड़ा। क्योंकि, उन्हें वीजा संबंधी कुछ आवश्यक काम पड़ गया है। ऐसे में, गडकरी की गैर-हाजिरी के दूसरे राजनीतिक निहितार्थ नहीं निकाले जाने चाहिए।
भाजपा के रणनीतिकार जिन राज्यों में अपने सांसदों की संख्या बढ़ाने का मंसूबा बांधे हैं, उनमें महाराष्ट्र भी शामिल है। यहां पर शिवसेना और भाजपा का बहुत पुराना राजनीतिक गठबंधन चला आ रहा है। शिवसेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे बीच-बीच में ‘तड़क-भड़क’ वाले बयान देकर टीम मोदी को बेचैन कर देते हैं। पिछले दिनों उत्तराखंड में हुई तबाही के प्रकरण में उद्धव ने मोदी की जमकर खिंचाई की थी। ठाकरे ने अपनी पार्टी के मुखपत्र ‘सामना’ में पिछले दिनों लिखा था कि मोदी तो प्रधानमंत्री पद के चेहरे हैं। ऐसे में उन्हें केवल गुजरातियों की चिंता नहीं जतानी चाहिए। इस तरह की राजनीतिक शैली से उनकी छवि का दायरा और संकीर्ण बनेगा। इस टिप्पणी को लेकर यही कहा गया कि ठाकरे भी मोदी को लेकर सहज नहीं हैं। इन राजनीतिक अटकलों के बीच मोदी ने ठाकरे के घर ‘मातोश्री’ में जाकर मुलाकात कर ली है। दोनों नेताओं के गले मिलते हुए फोटो भी जारी हुए। उद्धव ने लगे हाथ जमकर मोदी के गुणगान भी कर डाले।
दरअसल, उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख राज ठाकरे को लेकर काफी बेचैन रहते हैं। क्योंकि, चचेरे भाई राज ठाकरे की बढ़ती लोकप्रियता, शिवसेना के लिए राजनीतिक चुनौती बनती जा रही है। जबकि, मोदी ने राज ठाकरे को ज्यादा अहमियत देना शुरू किया है। मोदी ने उन्हें विशेष अतिथि की हैसियत से अहमदाबाद भी बुलाया था। यह बात उद्धव पचा नहीं पाए। पिछले दिनों मोदी के प्रकरण में आडवाणी ने पार्टी के अंदर काफी जोर अजमाइश की थी। नाराजगी में इस्तीफे का दांव भी चल दिया था। इस प्रकरण में उद्धव ठाकरे ने भी आडवाणी के प्रति हमदर्दी जताई थी। भाजपा नेतृत्व को सलाह दी थी कि आडवाणी जैसे वरिष्ठ नेता की राय को एकदम दरकिनार करना, एनडीए की राजनीतिक के लिए घातक हो सकता है। ठाकरे के इन तेवरों को देखते हुए टीम मोदी ने रणनीतिक प्रबंधन किया है। इसी के तहत मोदी और उद्धव ठाकरे की मुलाकात को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
पिछले दिनों पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने भी मुंबई में उद्धव ठाकरे से मुलाकात की थी। वे शिवसेना प्रमुख को भरोसा दिला आए हैं कि भाजपा के लिए शिवसेना की दोस्ती बहुत अहमियत रखती है। ऐसे में, पार्टी कोई ऐसा काम नहीं करेगी, जिससे कि शिवसेना की भावनाएं आहत हो जाए। अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा नेतृत्व ने राज ठाकरे के मामले में शिवसेना को विश्वास में लेना शुरू कर दिया है। उल्लेखनीय है कि गडकरी लॉबी इस बात की पैरवी करती आई है कि एनडीए के अंदर शिवसेना के साथ मनसे को भी समाहित करने की कोशिश की जाए। ऐसा करने से कांग्रेस और एनसीपी विरोधी वोट बंटने का खतरा नहीं रहेगा। जबकि, शिवसेना इस तरह की किसी रणनीति के धुर खिलाफ है। क्योंकि, राज ठाकरे का राजनीतिक कद बढ़ जाने से शिवसेना अपने को असुरक्षित समझने लगी है। राजनाथ के बाद अब मोदी ने भी उद्धव ठाकरे को ‘पक्की दोस्ती’ का भरोसा दिलाने की कोशिश की है। लेकिन, सबसे मुश्किल यही है कि भाजपा की अंदरूनी उठापटक को मोदी कैसे दूर कराएं? वे ‘मिशन महाराष्ट्र’ के बाद उत्तर प्रदेश की तरफ रुख करने वाले हैं। क्योंकि, यहां भी पार्टी के अंदर ढेर सी अंदरूनी दिक्कतें हैं। इस संदर्भ मेंं प्रदेश के संगठन प्रभारी अमित शाह ने उन्हें अपनी गोपनीय रिपोर्ट भी दे दी है। अमित शाह, मोदी के खास सिपहसालार हैं। मोदी ने शाह को उत्तर प्रदेश भाजपा संगठन का प्रभार दिलाकर, यहां पर चल रही दशकों की गुटबाजी को खत्म कराने का लक्ष्य रखा है। अब देखना है कि मोदी और उनके सिपहसालार यूपी की अंदरूनी किचकिच पर कैसे काबू पाते हैं?
वीरेंद्र सेंगर डीएलए (दिल्ली) के संपादक हैं।
Posted by 05.54
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