हैवानियत दामन पर दाग या कलंक

हैवानियत दामन पर दाग या कलंक


Aman Pathan
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दामिनी के बाद गुडिया के साथ हुई हैवानियत से एक बार फिर पूरा देश शर्मिंदा है. सवाल हैं कि इंसानियत के दामन पर लग रहे कलंक को कैसे मिटायें? शर्मिंदगी है कि घर में बैठी अपनी बहन बेटी की सवालिया नज़रों का सामना कैसे करें? फ़िक्र है कि घर से स्कूल गई बेटी सकुशल लौटेगी या नहीं? यह चिंता घुन की तरह खोखला कर रही है कि हैवानियत की पुनरावृत्ति कैसे रुके? ऐसे न जाने कितने सवाल देश के हर नागरिक के मन में उठ रहे हैं.दिल्ली में पांच वर्ष की मासूम के साथ दरिंदों ने इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली घटना को अंजाम देकर देश के दामन पर दाग नहीं बल्कि कलंक लगा दिया है.
शर्मनाक घटना की निंदा और आलोचना लगातार हो रही है. पूरे देश में बहस जारी है कि महिलाएं क्या करें? क्या न करें? अकेली घर से जायें या न जायें? सूरज ढलने के बाद घर में रहे या सामान्य पुरूष की भांति कामकाज पर जायें? उन्हें पढनें, लिखने, नौकरी और मनमाफिक कैरियर चुनने की आज़ादी दी जाये या कि मुग़लिया दौर की तरह घरों की चारदीवारी में ही कैद रखा जाये? महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों पर रोक लगाने के लिए फांसी की सजा दी जाये या बलात्कारी को नपुंसक बनाया जाये?
Posted by Unknown, Published at 02.23

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