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मुंबई । मुंबई वर्सोवा के जेपी रोड स्थित गुरुद्वारे के बाहर का फुटपाथ वरिष्ठ महिला पत्रकार सुनीता नाइक का आशियाना बना हुआ है। पिछले दो माह से सुनीता 12 साल के शशि नामक अपने पालतू कुत्ते के साथ रह रहीं हैं।
गृहलक्ष्मी के मराठी संस्करण की संपादक रह चुकीं सुनीता के अर्श से फर्श तक पहुंचने की कहानी बिल्कुल फिल्मी है। मदद को आगे आने वाले पूर्व साथियों की पेशकश भी वह सादगी से ठुकरा देती हैं। बकौल सुनीता नाइक, ‘कम उम्र में ही मेरे माता-पिता को देहांत हो गया था। इसके बाद पुणो विश्वविद्यालय से स्नातक (टापर्स में शामिल) किया और महिलाओं की पत्रिका ‘गृहलक्ष्मी’ (मराठी संस्करण) में संपादक बन गई।
नौकरी के दौरान ही (80 के दशक की शुरुआत में) प्रभादेवी स्थित जयंत अपार्टमेंट में दो फ्लैट खरीदे।’ कुछ साल पहले गृहलक्ष्मी (मराठी संस्करण) का प्रकाशन बंद हो चुका है। सुनीता बताती हैं, ‘वर्ष 2007 में प्रभादेवी वाले दोनों फ्लैट तथा दोनों कारें कुल 80 लाख रुपये में बेच दीं। इसके बाद ठाणो में किराए के एक बंगले में रहने लगी। जल्द ही उन्हें लगा कि मेरे पैसे रहस्यमय तरीके से कम हो रहे हैं।’ पांच भाषाओं पर पकड़ रखने वाली नाइक के अनुसार, मुङो नहीं पता कि मेरी आर्थिक स्थिति कैसे इतनी बिगड़ गई। मेरे पूर्व कर्मचारी कमल रायकर पिछले 15 वर्षो से बैंक खातों को देख रहे थे, लेकिन मोबाइल खराब होने से अब मैं उनसे संपर्क भी नहीं कर सकती हूं।
मुंबई । मुंबई वर्सोवा के जेपी रोड स्थित गुरुद्वारे के बाहर का फुटपाथ वरिष्ठ महिला पत्रकार सुनीता नाइक का आशियाना बना हुआ है। पिछले दो माह से सुनीता 12 साल के शशि नामक अपने पालतू कुत्ते के साथ रह रहीं हैं।
गृहलक्ष्मी के मराठी संस्करण की संपादक रह चुकीं सुनीता के अर्श से फर्श तक पहुंचने की कहानी बिल्कुल फिल्मी है। मदद को आगे आने वाले पूर्व साथियों की पेशकश भी वह सादगी से ठुकरा देती हैं। बकौल सुनीता नाइक, ‘कम उम्र में ही मेरे माता-पिता को देहांत हो गया था। इसके बाद पुणो विश्वविद्यालय से स्नातक (टापर्स में शामिल) किया और महिलाओं की पत्रिका ‘गृहलक्ष्मी’ (मराठी संस्करण) में संपादक बन गई।
नौकरी के दौरान ही (80 के दशक की शुरुआत में) प्रभादेवी स्थित जयंत अपार्टमेंट में दो फ्लैट खरीदे।’ कुछ साल पहले गृहलक्ष्मी (मराठी संस्करण) का प्रकाशन बंद हो चुका है। सुनीता बताती हैं, ‘वर्ष 2007 में प्रभादेवी वाले दोनों फ्लैट तथा दोनों कारें कुल 80 लाख रुपये में बेच दीं। इसके बाद ठाणो में किराए के एक बंगले में रहने लगी। जल्द ही उन्हें लगा कि मेरे पैसे रहस्यमय तरीके से कम हो रहे हैं।’ पांच भाषाओं पर पकड़ रखने वाली नाइक के अनुसार, मुङो नहीं पता कि मेरी आर्थिक स्थिति कैसे इतनी बिगड़ गई। मेरे पूर्व कर्मचारी कमल रायकर पिछले 15 वर्षो से बैंक खातों को देख रहे थे, लेकिन मोबाइल खराब होने से अब मैं उनसे संपर्क भी नहीं कर सकती हूं।
Posted by 03.32
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