राजीव के हत्यारों को फांसी की सजा सुप्रीमकोर्ट ने उम्रकैद में बदली

राजीव के हत्यारों को फांसी की सजा सुप्रीमकोर्ट ने उम्रकैद में बदली

toc news internet channel
सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्यारों को अब फांसी पर नहीं लटकाया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने राजीव गांधी हत्याकांड में मौत की सजा पाए तीन मुजरिमों संथन, मुरूगन और पेरारिवलन की सजा को आजीवन कैद में बदल दिया है। तीनों ने दया याचिकाओं के निबटारे में हुई असाधारण देरी के आधार पर मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील करने का अनुरोध किया था।

सुप्रीम कोर्ट ने इसके खिलाफ केंद्र सरकार की ओर दिए गए तमाम तकोंü को खारिज कर दिया। चीफ जस्टिस पी. सतशिवम के नेतृत्ववाली जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस एनवी रमन की खंडपीठ ने तीनों मुजरिमों की विशेष अनुमति याचिकाओं को स्वीकार करते हुए यह अहम फैसला सुनाया। इस मामले में सुनवाई गत चार फरवरी को पूरी कर ली गई और फैसला सुरक्षित रख लिया गया था, जिसे मंगलवार को सुनाया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने सजा को कम करते समय दोषियों की दया याचिका पर निर्णय लेने में केंद्र सरकार की ओर से हुई 11 साल की देरी का जिR किया। कोर्ट ने कहा, हम सरकार से अनुरोध करते हैं कि वह दया याचिकाओं पर निर्णय लेने के लिए राष्ट्रपति को उचित समय में सलाह दें। हमें भरोसा है कि दया याचिका पर निर्णय लेने में इस समय जितनी देरी हो रही है, इन याचिकाओं पर उससे कहीं जल्दी फैसला लिया जा सकता है। मुजरिमों की ओर से सीनियर एडवोकेट राम जेठमलानी ने दलील दी थी कि दया याचिका के निपटारे में 11 साल का वक्त लगा। दया याचिकाओं के निपटारे में अत्यधिक विलंब के कारण उनके मुवक्किलों को काफी वेदना सहनी पडी है। अपीलकर्ताओं की यह भी दलील थी कि उनकी दया याचिकाओं के बाद दायर दया याचिकाओं का निपटारा पहले कर दिया गया, लेकिन उनकी याचिकाओं को सरकार ने लंबित रखा।

इस दौरान मुजरिम 18 साल जेल में बंद रहे हैं इसलिए याचिका के निपटारे में देरी के आधार पर इनकी फांसी को उम्रकैद में बदला जा सकता है। केंद्र की दलीलों का विरोध करते हुए कहा गया था कि दया याचिकाओं के निबटारे में अत्यधिक देरी होने के कारण उन्हें काफी तकलीफ सहनी पडी है। इसलिए मौत की सजा उम्र कैद में तब्दील होनी चाहिए। केंद्र सरकार ने इन तीनों दोषियों की याचिका का जोरदार विरोध करते हुए कहा था कि दया याचिकाओं के निबटारे में देरी अनुचित और अस्पष्ट नहीं था इसलिए इस आधार पर फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने का यह उचित मामला नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल जीई वाहनवती ने दलील दी थी कि राष्ट्रपति को दया याचिका के निपटारे के लिए कोई समय सीमा तय नहीं है। ऎसे में इसे देरी नहीं कहा जा सकता। इस लिहाज से मामले में कोर्ट का 21 जनवरी का वह फैसला लागू नहीं होता जिसमें 15 लोगों की फांसी को उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया था।

वाहनवती ने माना था कि दया याचिका के निपटारे में देरी हुई है, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि यह देरी गैरवाजिब नहीं है। वाहनवती ने कहा था कि 21 जनवरी का फैसला इस मामले में लागू नहीं होता क्योंकि जेल में बंद इन मुजरिमों को किसी तरह की प्रताडना या फिर मानसिक यातना नहीं झेलनी पडी। वाहनवती ने दलील दी थी कि सुप्रीम कोर्ट से अर्जी खारिज होने के बाद इन्होंने राज्यपाल के सामने दया याचिका दायर की थी, जहां से अर्जी 2000 में खारिज हो गई। इसके बाद इनकी अर्जी गृह मंत्रालय के सामने 26 अप्रैल, 2000 को भेजी गई। 2004 तक यह मंत्रालय के सामने रही फिर 2005 में राष्ट्रपति के पास इनकी फाइल गई। 2011 में राष्ट्रपति ने दया याचिका खारिज कर दी।

 ऎसे में यह नहीं कहा जा सकता कि याचिका के निपटारे में काफी देरी हुई है। लेकिन कोर्ट ने केंद्र की सारी दलीलों को खारिज कर दिया। शीर्ष अदालत ने मई 2012 में राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों की मौत की सजा के खिलाफ दायर याचिकाओं पर विचार करके निर्णय करने का निश्चय किया था। कोर्ट ने मद्रास हाईकोर्ट को निर्देश दिया था कि तीनों की याचिकाएं उसके पास भेज दी जाए।
Posted by Unknown, Published at 04.08

Tidak ada komentar:

Posting Komentar

Copyright © THE TIMES OF CRIME >